अंधेरे में बिखरी चांदनी,
धरती के कण-कण को शीतल कर रही
दूधिया रोशनी से देखो,
मनहर दृश्य पृथ्वी के आंचल में कैसे भर रही
संसार सारा मौन है,
किंतु नियति अपने गति से खेल सारे रच रही
थल समूचा थम गया
चांदनी जल के प्रवाह संग स्वच्छंद देखो बह रही
वृक्ष मग्न में झूम रहे
घास की नोकों से धरती प्रसन्नता प्रकट कर रही
अंधेरे में बिखरी चांदनी,
धरती के कण-कण को शीतल कर रही